जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना महमूद मदनी ने ‘मदरसों के स्वरूप में बदलाव की किसी भी पहल’ को अस्वीकार्य बताते हुए धार्मिक शिक्षा केंद्रों के लिए स्वतंत्र शिक्षा बोर्ड की स्थापना पर मंगलवार को जोर दिया। संगठन द्वारा आयोजित ‘मदरसा संरक्षण सम्मेलन’ को संबोधित करते हुए राज्यसभा के पूर्व सदस्य मौलाना मदनी ने आरोप लगाया, “हमारी संस्थाओं को बंद करने या उनका स्वरूप बदलने के लिए पूरी ताकत लगाई जा रही है, लेकिन हम ऐसी कोई व्यवस्था को स्वीकार नहीं करेंगे।”

उन्होंने कहा कि वर्तमान समय की आवश्यकताओं के अनुरूप ऐसी व्यवस्था स्थापित की जाएगी, जिसके तहत “हमारी धार्मिक शिक्षा प्रभावित न हो और समकालीन शिक्षा की आवश्यकताएं भी पूरी हों।”

जमीयत के एक बयान के मुताबिक, मदनी ने मदरसा संचालकों से किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता लेने से बचने की गुजारिश करते हुए कहा कि मदरसों के लिए स्वतंत्र शिक्षा बोर्ड की स्थापना की जरूरत है और अगर ऐसी व्यवस्था बन जाए तो शिक्षा के क्षेत्र में एक नया अध्याय जुड़ जाएगा।

मौलाना ने कहा, “आज विभिन्न स्तर पर जिस तरह का रवैया अपनाया जा रहा है, उसके समाधान के लिए हमें एक दीर्घकालिक नीति बनानी होगी और ठोस और स्थिर उपाय करने होंगे।”

बयान के मुताबिक, सम्मेलन के दौरान प्रस्ताव पारित कर सरकारी एजेंसियों के कथित शत्रुतापूर्ण व्यवहार और मदरसा व्यवस्था में सुधार के बजाय अड़चन पैदा के प्रयासों की कड़ी निंदा की गई। बयान के मुताबिक, सम्मेलन के दौरान पारित प्रस्ताव में दावा किया गया है कि असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो अपने बयानों से मदरसों को लेकर देश की जनता को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं।

बयान के मुताबिक, सम्मेलन में दारुल उलूम देवबंद, दारुल उलूम वक्फ देवबंद और मजाहिर उलूम समेत 50 से अधिक मदरसों के पदाधिकारियों ने शिरकत की। इसमें आरोप लगाया है कि ‘दीनी मदरसों के खिलाफ सरकारी संस्थानों की कार्रवाई भेदभाव पर आधारित’ है।

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