हाल ही में केरल हाई कोर्ट ने कहा है कि किसी रेप पीड़िता को गर्भपात कराने की इजाजत नहीं देना, उसे सम्मान के साथ जीने का अधिकार देने से वंचित करने जैसा है। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की कि किसी बलात्कारी के बच्चे को जन्म देने के लिए किसी भी महिला को विवश नहीं किया जा सकता है।

जस्टिस कौसर एडप्पागथ ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट (MTP Act) के प्रावधानों के अनुसार, बलात्कार पीड़िता को बलात्कारी के बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है, जिसने उसे इतनी बड़ी यातना दी है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अगर महिला को जबरन बच्चे को देने के लिए मजबूर किया गया तो यह उसके साथ दूसरा बड़ा ट्रॉमा हो सकता है, जिसे वह जिंदगी भर नहीं भूल सकेगी।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस कौसर एडप्पागथ ने अपने फैसले में लिखा, “MTP Act की धारा 3(2) में प्रावधान है कि अगर गर्भ जारी रहने से गर्भवती महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर क्षति पहुंचती है, तो गर्भ समाप्त किया जा सकता है। धारा 3(2) के स्पष्टीकरण 2 में कहा गया है कि अगर गर्भ बलात्कार का परिणाम है तो गर्भावस्था के कारण होने वाली पीड़ा गर्भवती महिला के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर क्षति माना जाएगा। इसलिए, बलात्कार पीड़िता को उस व्यक्ति के बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता जिसने उसका यौन उत्पीड़न किया है।”

हाई कोर्ट ने आगे कहा, “बलात्कार पीड़िता को अवांछित गर्भ को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की अनुमति नहीं देना एक तरह से उसे मातृत्व की जिम्मेदारी उठाने के लिए मजबूर करना और उस पीड़िता के सम्मान के साथ जीने के मानवीय अधिकार से वंचित करना होगा, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।” इस मामले में पेच यहां फंसा था कि MPT Act के मुताबिर गर्भ के 24 सप्ताह तक ही गर्भपात कराया जा सकता है, जबकि नाबालिग ने 28वें सप्ताह का गर्भ हो जाने के बाद अदालत का दरवाजा खटखटाया था। हालांकि, सभा कागजातों और वस्तुस्थिति से अवगत होने के बाद हाई कोर्ट ने गर्भपात की इजाजत दे दी।

हाई कोर्ट ने यह आदेश 16 वर्षीय एक बलात्कार पीड़िता द्वारा मां के माध्यम से दायर की गई याचिका पर सुनाया है। याचिका में आरोप लगाया गया कि जब लड़की 9वीं कक्षा में पढ़ रही थी, तभी 19 वर्षीय उसके प्रेमी ने उसका यौन शोषण किया था, जिससे वह गर्भवती हो गई। आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO अधिनियम) और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम (SC/ST Act) के विभिन्न प्रावधानों के तहत आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।

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