इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाल ही में उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ जूडिशियल मजिस्ट्रेट को समन भेजकर अदालत में पेश होने को कहा है। जज साहब पर मुस्लिम वकीलों के खिलाफ कथित तौर पर धार्मिक भेदभाव करने के आरोप हैं। हाई कोर्ट ने एक विशेष समुदाय के बारे में वरिष्ठ जूडिशियल मजिस्ट्रेट की टिप्पणियों को न्यायिक कदाचार का मामला करार दिया है।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, यह मामला दो मुस्लिम मौलवियों मोहम्मद उमर गौतम और मुफ्ती काजी जहांगीर आलम कासमी और अन्य के खिलाफ आपराधिक मामले की सुनवाई के दौरान हुई घटना से जुड़ी हुई है। इन मौलवियों पर उत्तर प्रदेश के आतंकवाद निरोधी दस्ते द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन कराने का आरोप लगाया गया था।

इस मामले की सुनवाई लखनऊ के अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (विशेष न्यायाधीश एनआईए/एटीएस) विवेकानन्द शरण त्रिपाठी कर रहे थे, जिन्होंने जनवरी में शुक्रवार की नमाज में शामिल होने के लिए कुछ मुस्लिम वकीलों के संक्षिप्त स्थगन के अनुरोध को ठुकरा दिया था और उनकी जगह अदालत की सहायता के लिए अतिरिक्त वकील के रूप में एमिकस क्यूरी नियुक्त कर दिया था। ट्रायल जज ने आदेश दिया था कि जब भी मुस्लिम वकील नमाज पढ़ने जाएं तो एमिकस क्यूरी अभियुक्तों का प्रतिनिधित्व करेंगे।

इस आदेश के खिलाफ पिछले महीने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की गई थी। इसके बाद हाईकोर्ट में जस्टिस शमीम अहमद की बेंच ने निचली अदालत द्वारा पारित आदेशों पर रोक लगा दी थी। हाई कोर्ट के स्थगन आदेश के बाद ट्रायल जज ने मुस्लिम वकीलों को फिर से आरोपियों के मामले की पैरवी की इजाजत दे दी थी लेकिन इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के आवेदन पर फैसला नहीं किया।

इसके बाद वकील फिर हाई कोर्ट पहुंचे, जहां 3 अप्रैल को जस्टिस शमीम अहमद की बेंच ने अपने आदेश में ट्रायल कोर्ट के आचरण पर कड़ी आपत्ति जताई और कहा कि ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश स्थगन आदेश की गंभीरता को समझने में विफल रहे हैं और मनमाने तरीके से आगे बढ़ रहे हैं। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने अपने पहले के स्थगन आदेश को जारी रखते हुए, ट्रायल कोर्ट को याचिकाकर्ता के खिलाफ मुकदमे को आगे बढ़ाने से रोक दिया। हाईकोर्ट ने संबंधित आदेशों पर स्पष्टीकरण के लिए ट्रायल कोर्ट के जज को भी तलब कर लिया।

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