बात साल 2010 की है। गुजरात में उप चुनाव हो रहे थे। गर्मी के दिन थे और पारा 42 डिग्री पर था। गुजरात में अमूमन 42 डिग्री तापमान सुहाना ही समझा जाता है लेकिन उस साल 42 डिग्री तापमान लोगों को झुलसा रहा था। बिना पंखे के बैठना मुश्किल हो रहा था। उन्हीं चुनावों में एक निर्दलीय प्रत्याशी का चुनाव चिह्न ‘पंखा’ था। इसे देखकर चुनाव आयोग के पर्यवेक्षक ने मतदान केंद्र से चिललिचाती गर्मी में सभी पंखे हटा देने का फरमान जारी कर दिया।
उस पर्यवेक्षक का मानना था कि पंखा चलता देखकर मतदाता उसके प्रभाव में आ सकते हैं और उस प्रत्याशी के पक्ष में वोट दे सकते हैं। पोलिंग बूथ से पंखा हटाने के फरमान से चुनावी ड्यूटी में लगे कर्मचारियों और अफसरों को मानों सांप सूंघ गया। उन लोगों ने पर्यवेक्षक को बहुत समझाने की कोशिश की कि पंखा चलता देखकर मतदाताओं का रुझान किसी खास प्रत्यााशी की तरफ नहीं हो सकता है लेकिन चुनाव आयोग के ऑब्जर्वर ने किसी की नहीं सुनी।
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी ने अपनी किताब ‘ऐन अनडॉक्यूमेंटेट वॉन्डर’ में इस वाकये का जिक्र किया है। इस किताब को रूपा प्रकाशन ने छापा है। उन्होंने लिखा है, चुनाव आयोग से नियुक्त ऑब्जर्वर खुद हाथों में हथौड़ा और छेनी लेकर जिला प्रशासन के अफसरों के साथ मतदान केंद्र पर पंखा उतारने पहुंच गए थे।
एसवाई कुरैशी देश के 17वें मुख्य चुनाव आयुक्त थे। उन्हें 30 जुलाई 2010 को नवीन चावला के रिटायरमेंट के बाद देश का मुख्य चुनाव आयुक्त बनाया गया था। इससे पहले वह तीन सदस्यीय आयोग में आयुक्त थे। कुरैशी हरियाणा कैडर के 1971 बैच के IAS अधिकारी रहे हैं। उन्होंने अपनी किताब में चुनाव चिह्नों की यात्रा पर भी रोचक जानकारी दी है। उन्होंने देश में चुनाव चिह्नों में एम एस सेठी के योगदान की चर्चा की है, जो आयोग में ड्राफ्ट्समैन के पद पर कार्यरत थे और चुनाव चिह्न बनाते थे। सेठी 1992 में आयोग से रिटायर हुए थे।