नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (25 अप्रैल) को यह स्पष्ट कर दिया कि वह ‘केशवानंद भारती’ मामले में ऐतिहासिक 13 न्यायाधीशों की पीठ के फैसले से बंधा है, जिसने संविधान के अनुच्छेद 31सी के एक हिस्से को बरकरार रखा था, जिसका उद्देश्य कानूनों को बचाना था यदि उन्हें (कानूनों को) ‘सार्वजनिक हित’ के लिए बनाया गया हो। इस फैसले में यह माना गया था कि संसद संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन कर सकती है, जब तक कि वह संविधान की मूल संरचना या आवश्यक विशेषताओं में परिवर्तन या संशोधन नहीं करती है।
‘‘बुनियादी संरचना’’ सिद्धांत पर 1973 के अग्रणी ‘केशवानंद भारती’ फैसले ने संविधान में संशोधन करने की संसद की विशाल शक्ति को खत्म कर दिया था और साथ ही न्यायपालिका को किसी भी संशोधन की समीक्षा करने का अधिकार दे दिया था।
इसने अनुच्छेद 31-सी के एक प्रावधान की संवैधानिकता को भी बरकरार रखा था, जिसमें निहित था कि राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों (डीपीएसपी) को लागू करने वाले संशोधन यदि संविधान की ‘बुनियादी संरचना’ को प्रभावित नहीं करते हैं, तो उनकी न्यायिक समीक्षा नहीं होगी।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ-जजों की संविधान पीठ ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब वह इस विवादास्पद कानूनी सवाल पर बहस सुन रही थी कि क्या निजी संपत्तियों को भी अनुच्छेद 39 (बी) के तहत “समुदाय के भौतिक संसाधन” माना जा सकता है। पीठ ने कहा, “हम फिर से (केशवानंद भारती मामले में) 13 जजों की पीठ के फैसले के अधीन हैं। यह पांच न्यायाधीश का फैसला नहीं था।”
नौ सदस्यीय संविधान पीठ में प्रधान न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के साथ-साथ जिसमें जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस बीवी नागरत्ना, जस्टिस सुधांशु धूलिया, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल थे। मामले में सुनवाई बेनतीजा रही और अगले मंगलवार को फिर से सुनवाई होगी।