ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के सहयोगी रहे पूर्व IAS अधिकारी वीके पांडियन ने सक्रिय राजनीति छोड़ने का फैसला किया है। इसका ऐलान करते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें भाजपा के ऐसे आक्रामक अभियान की उम्मीद नहीं थी जिसमें उन्हें “बाहरी व्यक्ति” करार दिया गया था। ओडिशा विधानसभा और लोकसभा चुनावों में बीजद की करारी हार के बाद राजनीति से संन्यास लेने के अपने फैसले की घोषणा करने के बाद इंडिया टुडे टीवी से पांडियन ने कहा कि उनके जन्म स्थान के बारे में उठाए गए सवालों के कारण उनकी राजनीति पर प्रभाव पड़ा है। बता दें कि पांडियन तमिलनाडु के रहने वाले हैं।
ओडिशा में लोकसभा और विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा ने पांडियन को बाहरी करार दिया था और आरोप लगाया था कि ओडिशा की राजनीति को एक बाहरी प्रभावित करने चाहता था। भाजपा ने ये भी आरोप लगाया था कि पाडियन ने मुख्यमंत्री आवास को अपने कब्जे में कर रखा है और बिना उनकी इजाजत के किसी की भी एंट्री वहां संभव नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद पुरी के जगन्नाथ मंदिर के खजाने की चाभी गुम होने के मामले में उन पर निशाना साधा था और आरोप लगाया था कि कहीं खजाने का धन तमिलनाडु तो नहीं जा रहा है।
वीके पांडियन मुख्यमंत्री कार्यालय में सीएम के सचिव थे लेकिन पिछले साल नवंबर में सिविल सेवा से इस्तीफा देकर वह बीजू जनता दल में शामिल हो गए थे। भाजपा ने पांडियन पर बीजद के भीतर काफी प्रभाव रखने का आरोप लगाया।
अपने इस्तीफे पर पांडियन ने कहा, “जिस तरह से मेरे मूल और मेरे जन्म स्थान पर हमला करते हुए प्रचार किया गया, वह कुछ ऐसा था जिसकी मैंने कल्पना नहीं की थी। मैं अपने जन्म स्थान के कारण अपनी सीमाओं को विनम्रता से स्वीकार करता हूं। मैंने ओडिशा में अपना दिल लगाया और राज्य के विकास के लिए कड़ी मेहनत की। मैंने हर संभव प्रयास किया लेकिन अंततः, जन्म स्थान एक ऐसा मुद्दा था, जिस पर मेरा नियंत्रण नहीं था।”
दरअसल, चुनाव नतीजे आते ही पांडियन लापता हो गए थे। उन्हें ना तो विधायक दल की बैठक में देखा गया था और ना ही सीएम के साथ राजभवन में देखा गया था, जब पटनायक इस्तीफा देने पहुचें थे। एक दिन पहले ही पांडियन की IAS पत्नी चाइल्ड केयर लीव पर लंबी छुट्टी पर चली गई हैं।