लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान आज संपन्न हो गया। 12 राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश की कुल 88 सीटों पर शाम 5 बजे तक हुए मतदान के आंकड़ों से स्पष्ट है कि कमोबेश सभी जगह मतदान के प्रतिशत में गिरावट दर्ज की गई है। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की आठ सीटों पर आज हुए चुनाव में पहले फेज के मतदान से भी कम वोटिंग हुई है। ताजा समाचार मिलने तक यूपी की आठों लोकसभा सीटों पर 52.74 फीसदी वोट पड़े थे, जो पहले चरण से करीब पांच फीसदी कम है। पहले चरण में पांच बजे तक 57 फीसदी से ज्यादा वोट पड़े थे। हालांकि, यह अंतिम आंकड़ा नहीं है और इसमें थोड़ा और बढ़ोत्तरी होने की संभावना है।
कहां कितनी वोटिंग?
उत्तर प्रदेश के मथुरा में सबसे कम वोटिंग हुई है। यहां 5 बजे तक केवल 46.96% लोगों ने ही वोटिंग की थी। अलीगढ़ में 54.36%, अमरोहा में 61.89%, बागपत में 52.74%, बुलंदशहर में 54.34%, गौतमबुद्धनगर में 51.66%, गाजियाबाद में 48.21% और मेरठ में 54.62% मतदान हुआ था।
अन्य राज्यों की बात करें तो बिहार में भी वोट परसेंट में गिरावट दर्ज की गई है, वहां शाम 5 बजे तक 53.58% मतदान रिकॉर्ड किया गया है। हालांकि, पूर्वोत्तर के राज्यों में फिर लोगों ने बढ़ चढ़कर वोटिंग की है। असम 70.66%, मणिपुर 76.06%, त्रिपुरा 77.53% और पश्चिम बंगाल 71.84% वोटिंग हुई है। इनके अलावा छत्तीसगढ़ में 72.13%, मध्य प्रदेश में 54.83%, महाराष्ट्र में 53.51%, कर्नाटक में 63.90%, केरल में 63.97%, जम्मू और कश्मीर में 67.22% और राजस्थान 59.19% वोटिंग दर्ज की गई है।
राजनीतिक जानकार बता रहे हैं कि गर्मी के अलावा स्थानीय मुद्दों की कमी, स्थानीय सांसदों के प्रति नाराजगी और इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अबकी बार 400 पार के नारे की वजह से वोटरों को ऐसा लगता है कि फिर से भाजपा की ही सरकार बनने जा रही है, इसलिए मतदान में रूचि नहीं ले रहे हैं। हालांकि, कुछ विश्लेषकों का कहना है कि महंगाई, बेरोजगारी जैसे कई बड़े मुद्दे हैं लेकिन मतदाताओं का ध्रुवीकरण नहीं हो सका है, इसलिए बड़ी संख्या में लोग वोट डालने नहीं निकल रहे हैं।
कुछ चुनावी विश्लेषकों का यह भी मानना है कि इस चुनाव में भी भाजपा बनाम कांग्रेस के अलावा तीसरा कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा है, इसलिए परिवर्तन को नाउम्मीदी में लोग वोट करने घरों से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं।
किस-किस के क्या मुद्दे?
सत्ताधारी भाजपा पिछले 10 वर्षों के अपने काम-काज और 2047 के विकसित भारत के एजेंडे के नाम पर चुनावों में वोट मांग रही है लेकिन प्रधानमंत्री से लेकर सत्ता पक्ष का हर बड़े नेता इन मुद्दों पर कम ही बातें कर रहे हैं और वे सभी कांग्रेस, राहुल गांधी और गांधी नेहरू परिवार को घेर रहे हैं। जैसा कि अमूमन हर चुनाव में होता आया है। 2014 के चुनाव में जब मोदी पहली बार बंपर सीटों से जीतकर सरकार में आए थे, तब भाजपा ने महंगाई, बेरोजगारी, डीजल-पेट्रोल के दाम, दो करोड़ नौकरियों का वादा, अत्याचार, राम मंदिर,370 जैसे कई लोकलुभावन मुद्दों पर बात की थी, लेकिन इस बार उसकी कमी है।
दूसरी तरफ राहुल गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस और उसके सहयोगी दल जातीय जनगणना, आरक्षण खत्म करने की भाजपा को कोशिश, संविधान बदलने का भय, महंगाई, बेरोजगारी, किसानों को एमएसपी और न्याय स्कीम के तहत महिलाओं छात्राओं और विद्यार्थियों को पैसे देने, अप्रेंटिसशिप देने जैसे कई लोकलुभावन मुद्दों की बात कर रही है। भाजपा जहां हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण में जुटी है तो वहीं इंडिया अलायंस के नेता ओबीसी-एससी-एसटी ध्रुवीकरण में लगी हुई हैं।
कम वोटिंग के क्या मायने?
अमूमन कहा जाता है कि जब सत्ता विरोधी लहर होती है तो बंपर वोटिंग होती है लेकिन यह मिथक कई बार टूट चुका है। एक तर्क यह भी है कि जब कम वोटिंग होती है तो भाजपा के लिए वह निराशाजनक होती है। हालांकि भाजपा के नेता दावा कर रहे हैं कि पीएम मोदी की अगुवाई में चौथी बार एनडीए की सरकार बनने जा रही है। दूसरी तरफ कुछ कांग्रेसी नेताओं का दावा है कि कम वोटिंग और मतदाताओं के रुझान से भाजपा परेशान है। उनका दावा है कि जब भी कम वोटिंग हुई है, सत्ता कांग्रेस के हाथ में आई है।
कब-कब कितनी फीसदी वोटिंग?
2019 के लोकसभा चुनाव में देशभर के कुल 542 निर्वाचन क्षेत्रों (एक सीट पर बाद में चुनाव हुआ था) में 67.11% मतदान हुआ था जो रिकॉर्ड था। 2014 में यह आंकड़ा 66.44% था। पिछले सभी लोकसभा चुनावों में मतदान प्रतिशत के आंकड़ों पर गौर करें तो इसमें उतार-चढ़ाव होता रहा है। सबसे कम मतदान 1951 में हुए पहले आम चुनाव में हुआ था। उस वक्त सिर्फ 45.67% मतदाताओं ने मतदान किया था। इसके बाद 1957 में 47.74%, 1962 में 55.42%, 1967 में 61.33% (जब पहली बार इंदिरा गांधी ने कांग्रेस का नेतृत्व किया था), 1971 में 55.29%, 1977 में 60.49%, 1980 में 56.92%, 1984-85 में 64.01% (इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुआ था चुनाव), 1989 में 61.95% (जब वी पी सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चा की जीत हुई थी), 1991-92 में 55.88% (जब कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी की हत्या कर दी गई थी), 1996 में 57.94%, 1998 में 61.97%, 1999 में 59.99%, 2004 में 57.98% 2009 में 58.19% और 2014 में 66.44% वोट पड़े थे।
कम वोटिंग और भाजपा सरकार
बता दें कि 2004 के चुनावों में 1999 से करीब दो फीसदी कम वोट पड़े थे, तब केंद्र से अटल बिहारी वाजपेयी सरकार गिर गई थी और मनमोहन सिंह की सरकार बनी थी। 1998 में जब वाजपेयी की सरकार 13 महीने के लिए बनी थी, तब 1996 के मुकाबले करीब चार फीसदी अधिक वोटिंग हुई थी और जब 1999 में सरकार गिरने के बाद तीसरी बार पूरे पांच साल के लिए अटल सरकार बनी थी, तब वोटिंग परसेंट में करीब दो फीसदी की गिरावट आई थी।