नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में राजनीतिक फंडिंग के लिए लाई गई चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया है और इसे असंवैधानिक करार दिया है। अपने फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा कि यह संविधान प्रदत्त सूचना के अधिकार और बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करती है। लोकसभा चुनाव से पहले आए इस फैसले में उच्चतम न्यायालय ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को छह वर्ष पुरानी इस योजना में दान देने वालों के नामों की जानकारी निर्वाचन आयोग को देने का निर्देश दिया है।
देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-जजों की संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि एसबीआई को राजनीतिक दलों द्वारा भुगतान कराए गए सभी चुनावी बॉन्ड का ब्योरा देना होगा। इस ब्योरे में यह भी शामिल होना चाहिए कि किस तारीख को यह बॉन्ड भुनाया गया और इसकी राशि कितनी थी। इसने कहा कि साथ ही पूरा विवरण छह मार्च तक निर्वाचन आयोग के समक्ष पेश किया जाना चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि निर्वाचन आयोग को एसबीआई द्वारा साझा की गई जानकारी 13 मार्च तक अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर सार्वजनिक करनी होगी। पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे। पीठ ने चुनावी बॉन्ड योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दो अलग और सर्वसम्मत फैसले दिए। सीजेआई ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है।
उन्होंने फैसला सुनाते हुए कहा, ”चुनावी बॉन्ड योजना और विवादित प्रावधान ऐसे हैं कि वे चुनावी बॉन्ड के माध्यम से योगदान को गुमनाम बनाते हैं तथा मतदाता के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करते हैं, साथ ही अनुच्छेद 19 (1) (ए) का भी उल्लंघन करते हैं।” पीठ ने कहा कि नागरिकों की निजता के मौलिक अधिकार में राजनीतिक गोपनीयता, संबद्धता का अधिकार भी शामिल है। फैसले में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम और आयकर कानूनों सहित विभिन्न कानूनों में किए गए संशोधनों को भी अवैध ठहराया गया।
इसमें कहा गया कि एसबीआई चुनावी बॉन्ड जारी नहीं करेगा और 12 अप्रैल 2019 से अब तक खरीदे गए चुनावी बॉन्ड के ब्योरे निर्वाचन आयोग को देगा। न्यायालय ने कहा कि साथ ही एसबीआई को उन राजनीतिक दलों के भी ब्योरे देने होंगे जिन्हें 12 अप्रैल 2019 से अब तक चुनावी बॉन्ड के जरिए धनराशि मिली है। पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस वाई कुरैशी ने इस फैसले पर प्रसन्नता जताई है।
उन्होंने कहा, ”इससे लोगों का लोकतंत्र पर विश्वास बहाल होगा। इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता था। यह उच्चतम न्यायालय की ओर से पिछले पांच-सात वर्ष में दिया गया सबसे ऐतिहासिक निर्णय है। यह लोकतंत्र के लिए वरदान है।” उन्होंने ‘एक्स’ पर लिखा, ”उच्चतम न्यायालय ने चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया। उच्चतम न्यायालय जिंदाबाद।”
पीठ ने पिछले वर्ष अक्टूबर में चार याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की, जिनमें कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की याचिकाएं शामिल हैं। ठाकुर ने उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद पीटीआई वीडियो से कहा, ”जो लोग चुनावी बॉन्ड के माध्यम से धन दान कर रहे थे वे अपने नाम का खुलासा नहीं कर रहे थे। कहीं न कहीं वे सरकार से कोई फायदा चाहते होंगे….इस फैसले से फर्क पड़ेगा। यह लोगों के हितों की रक्षा करेगा।”
मामले में ठाकुर के वकील वरुण ठाकुर ने इस फैसले को सरकार के लिए एक झटका बताया ”क्योंकि 2018 से 2024 तक जो भी लेनदेन हुआ है उसे सार्वजनिक करना होगा।” ठाकुर ने कहा, ”जिस तरह से योजना के माध्यम से गुमनाम योगदान प्राप्त हुआ उसके लिए यह एक झटका है। अब जवाबदेही तय की जाएगी। यह लोकतंत्र के लिए एक ऐतिहासिक कदम है और आज हम कह सकते हैं कि लोकतंत्र की जीत हुई है।”
एडीआर की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा, ”उच्चतम न्यायालय ने एसबीआई को इस बात की पूरी जानकारी देने का निर्देश दिया है कि बॉन्ड किसने खरीदे, किसने भुनाए… यह सारी जानकारी निर्वाचन आयोग को सौंपनी होगी, जिसे इसे अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक करना होगा ताकि लोगों को पता चले कि बॉन्ड किसने खरीदे।”
चुनावी बॉन्ड योजना को सरकार ने दो जनवरी 2018 को अधिसूचित किया था। इसे राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले दान के विकल्प के रूप में पेश किया गया था। योजना के प्रावधानों के अनुसार, चुनावी बॉन्ड भारत के किसी भी नागरिक या देश में निगमित या स्थापित इकाई द्वारा खरीदा जा सकता है। कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बॉन्ड खरीद सकता है। आलोचकों का कहना था कि इससे चुनावी वित्तपोषण में पारदर्शिता समाप्त होती है और सत्तारूढ़ दल को फायदा होता है।