देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले सुप्रीट कोर्ट के कॉलेजियम ने आज (शुक्रवार, 19 जनवरी) कर्नाटक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले को शीर्ष अदालत के जज के रूप में पदोन्नत करने की सिफारिश की है। अगर केंद्र सरकार की तरफ से जस्टिस पीबी वराले के नाम पर मुहर लगती है तो सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा, जब वहां एकसाथ तीन दलित जज कार्यरत होंगे।
मौजूदा समय में सुप्रीम कोर्ट में दो दलित जज हैं। जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस सी टी रविकुमार दलित समुदाय से आते हैं। जस्टिस वराले की नियुक्ति के साथ ही यह संख्या बढ़कर तीन हो जाएगी। जस्टिस वराले को 18 जुलाई, 2008 को बॉम्बे हाई कोर्ट का जज नियुक्त किया गया था। तीन साल बाद 15 अक्टूबर, 2022 को उन्हें कर्नाटक हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में प्रमोट किया गया था।
कॉलेजियम के अनुसार, जस्टिस वराले ने न्यायाधीश के रूप में काफी अनुभव प्राप्त किया। वह हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की संयुक्त अखिल भारतीय वरिष्ठता में क्रमांक 6 पर है। बॉम्बे हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की वरिष्ठता में, वह सबसे सीनियर हैं।
शुक्रवार को हुई एक बैठक में, कॉलेजियम जिसमें जस्टिस संजीव खन्ना, बीआर गवई, सूर्यकांत और अनिरुद्ध बोस भी शामिल थे, ने इस तथ्य पर विचार किया कि पीबी वराले हाई कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीशों में से एक हैं और हाई कोर्ट के एकमात्र अनुसूचित जाति के मुख्य न्यायाधीश हैं।
कॉलेजियम ने 25 दिसंबर, 2023 को न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की सेवानिवृत्ति पर उत्पन्न रिक्ति पर ध्यान दिया। उसने कहा, “इस बात को ध्यान में रखते हुए कि न्यायाधीशों का कार्यभार काफी बढ़ गया है, यह सुनिश्चित करना आवश्यक हो गया है कि न्यायालय में हर समय न्यायाधीशों की पूर्ण क्षमता हो। इसलिए, कॉलेजियम ने एक नाम की सिफारिश करके एकमात्र मौजूदा रिक्ति को भरने का निर्णय लिया है।”